ज़िंदगी पानी का बताशा है
मुस्कुराना बड़ी दिलासा है।
है कठिन वक्त हम संभल जाएं,
लोगों में भर गई निराशा है।
छोटी कोशिश है, पार पाने की,
फिर भी उम्मीद और आशा है।
लोग मायूस सच हुए कितने,
समझे कैसे नयन की भाषा है।
ग़म की बदली, घड़ी है मुश्किल की,
कितना छाया घना कुहासा है।
नाम उसका बना सहारा अब,
जल्दी हटती नहीं हताशा है।
नागेन्द्र नाथ गुप्ता
No comments:
Post a Comment