साहित्य चक्र

08 February 2020

जब दिल वीराना हो तुम्हारा

जब दिल तुम्हारा टूटने लगे, 
जब लोग बातें बनाने लगे। 
जब मुफलिसी में हो तुम, 
जब लोग तुमसे कतराने लगें। 


जब दिल वीराना हो तुम्हारा, 
जब तन्हाईयां सताने लगे। 
जब ख्वाब में नींदे टूटने लगें, 
जब यादें किसी की सताने लगे। 


जब दिल की लगी दिल जलाने लगे, 
जब अपने पराये ताने सुनाने लगे। 
जब ज्योत घर की घर जलाने लगे, 
जब कमिंया तुम्हारी लोग गिनाने लगे। 


जब मन पर सोच भारी भारी लगे, 
जब जिंदगी सांस पर सवारी लगी। 
जब दिन बिरह रात कुंवारी लगे, 
जब हर चोट दिल पर करारी लगे। 


तब जेब अपनी तुम टटोलना, 
खनकते सिक्कों की कमी मे। 
अपने पराये सबको तुम तोलना, 
भेद गरीबी का ना किसी से खोलना। 


औकात रिश्तों की पैसे बताने लगे, 
लोग अपनों को यूं आजमाने लगे। 
जेब भारी तो सब अपने जेब जरा, 
 हल्की तो लोग तुम्हें गैर बताने लगे। 


तब हौले से तुम जमाने में मुस्कुराना, 
खाली जेब का बोझ खुद उठाना। 
गिरकर खड़े होने का हुनर दिखाना, 
लोग सम्भालने आये उसके पहले सम्भल जाना। 


                                                    आरती त्रिपाठी


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