साहित्य चक्र

01 February 2020

दिनकर की ज्वाला

तरुण
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तरुण तेज भर बनो तपस्वी,दमक उठे तरुणाई।
यौवन का  उन्माद नसों  में,लरक  पड़े परछाई।

दिनकर की ज्वाला भर ले उर,पूर्णचन्द्र की आभा।
सागर का ले धैर्य हृदय में,खिले कमल की शोभा।
अनल ज्वाल सी आँच सरीखे,अंग पड़े  दिखलाई।
तरुण  तेज भर  बनो तपस्वी,दमक  उठे तरुणाई।

जीवन का उद्देश्य  सफल,व्रत ब्रह्मचर्य करता है।
संयम तप,का ओज रक्त में,नयी चमक भरता है।
छोड़ पुरानी परिपाटी,युग  बदल  बनो  सुखदाई।
तरुण तेज  भर बनो  तपस्वी,दमक उठे तरुणाई।

नए क्षितिज की ओर कदम,लक्ष्य बसा आँखों में।
पाषाणी  कर कदम ,बढ़े  चल, उन्मादी  श्वासों  में।
बीता,मत  कर  याद, भूलादे,बनता  वह  दुखदाई।
तरुण  तेज  भर बनो  तपस्वी,दमक  उठे तरुणाई।

बीत गया जो बीत गया,अब नई राह को चुनना।
उलझे ताने  तोड़,फैक दे,नयी  बिछावन बुनना।
नये ज्ञान  से भरी  सुबह हो,प्राची दिशा मुस्काई।
तरुण तेज  भर बनो तपस्वी,दमक उठे तरुणाई।

नहीं पास कुछ भी खोने को,बस,पाना ही पाना है।
ज्ञान और  विज्ञान  भरा  जग,लेना  और देना है।
ज्ञान सदा नीति सम्मत ही हो,यह होता फलदाई।
तरुण तेज भर बनो  तपस्वी,दमक  उठे तरुणाई।

जनम मरण विधि के हाथो में,इसकी सोच न करना।
याद करे  जगती  का कण  कण, ऐसे जीना मरना।
अँधकूप  को  त्याग बाहर  आ,देवसरि है बह आई।
तरुण तेज  भर बनो  तपस्वी,दमक  उठे  तरुणाई।

उर में  रख  विश्वास,निड़र हो, सत्य  सहारा लेना।
नीति  निपुण  मर्यादा  रक्षक,धर्म  राह पर चलना।
सत पथ पर जो बढ़े कदम तो,निश्चित फल सुखदायी।
तरुण  तेज  भर बनो  तपस्वी, दमक  उठे तरुणाई।

                                       हेमराज सिंह 


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