गीतिका
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कभी अहम को मेरे दिल का पता न देना
दिल की कोमलता का कारण बता न देना
जिसको भाता है उसके संग ही रहने दो
प्रिय तुम अपना अपना प्रेम समर्पण जता न देना
मन उपवन में जो पतझड़ को पाल रहे हैं
हरगिज उन हाथों में नाजुक लता न देना
पाक प्रेम की दुनिया में मन को जीने दो
तुम्हे कसम है एक पल को भी सत्ता न देना
गलती कर स्वीकारेंगे तो मान बढ़ेगा
दूजे के सर लिख तुम अपनी ख़ता न देना
जुर्म सहे लेकिन प्रतिकार न करना जाने
मन को हरगिज इतनी भी सौम्यता न देना
मेहनत से जो गुण पाए काफी है "अंचल"
उठा पटक कर और अधिक गुणवत्ता न देना।।
ममता शर्मा"अंचल"
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