साहित्य चक्र

26 February 2020

देश की बेटी निर्भया और प्रियंका




काश ! अगर मैं तेरे, इंसानियत के पीछे छिपेे,
 हैवान को पहचान पाती।
तो शायद, मैं आज तेरी हैवानियत का शिकार न हो पाती।

काश ! अगर मैं तेरे दिल में छिपी हुई,
दरिंदगी को पहचान पाती।
तो शायद, मैं तुझ जैसे दरिंदे से ,
अपनी लाज को बचा पाती।

काश ! अगर मैं तेरे दिलों-दिमाग में चल रहे, 
षड़्यंत्र को पहचान पाती।
तो शायद, मैं तेरे घिनोने षड़्यंत्र के खेल का मुहरा न बन पाती।

काश ! अगर मैं तेरे चेहरे के पीछे, छिपे नकाब को पहचान पाती।
तो शायद ,मैं अपने चेहरे के नकाब को बेनकाब न होने देती।

काश ! अगर मैं तेरी असलियत को पहचान पाती।
तो यूँ, अकेले में बैठकर आँखों से 
अनगिनत आँसू न बहा रही होती।


काश ! अगर ,हे खुदा तुने,
देश की बहन - बेटियों की,
दर्द भरी रोने की, चिल्लाने की,
सिसकने की,आवाज सुनी होती।

तो शायद आज निर्भया,प्रियंका,
जैसी देश की बेटियाँ,
धरती माता को लिपटकर रोते हुए, 
अपनी मृत्यु को न अपनाती।

                                   दीपिका कटरे


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