साहित्य चक्र

01 February 2020

शान ओ शौकत इश्क के बाज़ार

गज़ल - प्यार में


गुँगी रही शान ओ शौकत इश्क के बाज़ार में। 
ना जाने कितने खुद को लुटा बैठे प्यार में। 

खंजरो से खेल था ज़नाब 
हम भी खेल आए इश्क ए गुलज़ार में। 

टूकडे़ टूकड़े लेकर लौटे दिल के। 
सबक मिला और हम भी गुँगे नज़र आए प्यार में। 

क्या कहे उस जालिम को 
जिसने ज़रा भी रहम ना खाया इश्क ए बाज़ार में। 

सब लुटाकर भी वो हमारे ना हुए। 
मनन हम भी बेवकुफ़ रहे उनके इंतजार में।
 
                                        मनन तिवारी 


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