गज़ल - प्यार में
गुँगी रही शान ओ शौकत इश्क के बाज़ार में।
ना जाने कितने खुद को लुटा बैठे प्यार में।
खंजरो से खेल था ज़नाब
हम भी खेल आए इश्क ए गुलज़ार में।
टूकडे़ टूकड़े लेकर लौटे दिल के।
सबक मिला और हम भी गुँगे नज़र आए प्यार में।
क्या कहे उस जालिम को
जिसने ज़रा भी रहम ना खाया इश्क ए बाज़ार में।
सब लुटाकर भी वो हमारे ना हुए।
मनन हम भी बेवकुफ़ रहे उनके इंतजार में।
मनन तिवारी
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