साहित्य चक्र

20 February 2020

शिव से सीखने दो मुझे

महायोगी से महाप्रेमी

क्षमा करना कृष्ण
प्रेम प्रणय की दृश्यावली
मैं तुम्हारे रासमंडल में
कदाचित न देख पाऊंगी

मेरे मन मस्तिष्क में
अर्द्धजला शव हाथों में लिए
क्रंदन के उच्च 
आरोह अवरोह में
तांडव करते हुए
शिव की प्रतिकृति उकेरित है

वो प्रेम ही क्या
जो विक्षिप्तता न ला दे

तुम्हारी बंसी की धुन को
सुनने से पहले सम्भवतः
मैं चयन करूंगी
प्रेमाश्रु बहाते हुए शिव के 
डमरू का आतर्नाद
और विकराल विषधरों की फुफकार


मृत्यु या बिछोह पर
तुम्हीं करो
“बुद्धि” का प्राकट्य
मुझे उस “बोध” के साथ
रहने दो, जो हर मृत्यु
अपने साथ लाती है

शिव से सीखने दो मुझे
कैसे विरहाग्नि
महायोगी को रूपांतरित करती है
महाप्रेमी में


अनुजीत इकबाल

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