आया ऋतुराज बसंत हुई चारों ओर बहार ।
हुई धरा सुसज्जित लाया अपनो का प्यार।।
सरसों से श्रृंगार यूं लगे जैसे हो पीताम्बर ।
केदार की हरियाली भी चहुं ओर बराबर ।।
छेड़े कोकिला सस्वर कुहू मधुर रस-तान ।
पुष्पों से शोभित तरुवर बंसत की पहचान ।।
वाग्देवी माता की वीणा करे सु मधुर वादन ।
जड़ अचेतन सब करे बसंत का अभिवादन ।।
बहार बसंत की सबको प्यारी लगे मधुर सौगात ।
हर मन चाहे हर पल लाए बसंत ऐसी ही बारात ।।
डाल डाल करें श्रृंगार बसंत की शोभा अनंत ।
सुगन्ध बहे समीर सबकुछ लेकर आया बसंत ।।
️ राज शर्मा
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