साहित्य चक्र

02 February 2020

बंदिशों की बेडियाँ...!



 राम प्रसाद और साधना जी की दो बहुऐ थी ।रामप्रसाद सरल स्वभाव के थे। पर उनकी पत्नी साधना  के  अपने नियम कानून थे   ।साधना को अपनी बहू को काम करवाना अच्छे से आता था ।दोनो  की कोई अपनी मर्जी नहीं थी। जिस समय जो कह दिया वह पत्थर की लकीर हो जाता था।

 दोनो बहुए घबराहट में कुछ नहीं कह पाती थी। मंजु.. साधना जी ने आवाज दी, जी मम्मी जी, आज गेहूँ साफ होगे याद है ना!जी मम्मी जी कर लेगे शाम को ।नही दोपहर को करना । वो मम्मी जी दोपहर को आज रूही को पढाना था मुझे कल टेस्ट है रात को जल्दी सो जाती है। मंजु ने कहा। देखो बहु! शाम को बहुत काम है चायशाम की ,रात के खाने की तैयारी ।

 दोपहर को ही करना ।मंजु मन मसोस कर रह गयी । और जल्दी से काम करने लगी ताकी थोडा भी समय मिले तो रूही को समझा दूँ। दीदी आप रूही को पढा लिजिए बाकी मै कर लूंगी मीनु ने कहा जो मंजु की देवरानी थी दोनो एक दुसरे की परेशानी समझती थी। नही मिलकर जल्दी करेगे त़ो हो जायेगा। छोटे बेटे  ने अगले दिन मीनु से पूछा पिक्चर चलोगी?मम्मी से पूछ लेना ।मम्मी ,मीनु को बाजार से कुछ काम था तो सोचा वो भी कर लेगें पिक्चर भी देख आयेगे।

ऐसा क्या काम है? क्यूँ मीनु ?जी पा्रलर जाना था ।ओहो!अभी तो गयी थी कुछ दिन पहले । फैशन ही खत्म नही होते तुम्हारै। हो आओ पर पिक्चर विक्चर नही, आज बहुत काम है ।कोफ्ते बनाने को बोल रहे है तुम्हारे पापा। 

मंजु ने कहा मै.बना लुगी । मीनु को जाने दिजिये। तुम चुप रहो आज नही तो नही। छोटा बेटा भी माँ के सामने नही बोल पाया। मीनु उदास हो गयी। जानती थी दोनो बेटो की आवाज नही निकलती माँ, पिता के सामने।

अगले दिन गाँव से सास रहने आ गयी । अब तो साधना जी के सिर पर पल्लु आ गया। सासु जी के पैर दबाती तेल लगाकर ,कभी सिर की मालिश करती ।सासु जी की एक दमदार आवाज में साधना जी वही होती। 
और मंजु और मीनु मुहँ मे पल्लु दबाए खुब हँसती । देखो जीजी अब आया ऊँट पहाड के नीचे । हमे बहुत परेशान करती थी अब कैसी हमारी तरह कठपुतली बन गयी। उधर साधना अपनी बहुओ से बुराई करती ।

 ना जाने.क्या हो गया अम्मा जी को गाँव से आके । पहले तो कभी इतना रौब नही दिखाती थी। इस बार देखो फिरकी की तरह मुझे नचा रही है ।ना जाने कब जायेगी?

और राम प्रसाद जी से सारी रात बुराई करती।अम्मा जी ने तो एक मिनट बैठने नही दिया बहुओ की हाथ से बना भाता नही। मुझे ही कहती है् तू बना। बताओ जी जब से दोनो बहुए आई तब से मैने कहाँ रसोई मे कदम रखा है। ठीक तो कह रही है अम्मा। तु स्वादिष्ट बताती है इसलिए तुझसे बनवा रही है। ओहो! जी दोनो बहुए भी बहुत अच्छा बनाती है ।पर उनकी तारीफ कर दी तो सिर पर चढ जायेगी। 

कब को कह रही है जाने को गाँव? अरे पगला गयी है। आये हुए चार दिन नही हुए। जाने का पूछू ? साधना मुँह बनाकर उठ गयी ।पहले तो ऐसा व्यवहार नही करती थी। अब तो बदल ही गयी अम्मा जी।

अम्मा जी बहुओ को खूब दुलार करती। पोतो को कहती जाओ घूमा आओ बहुओ को । मैं साधना मिलकर कर लेगें। साधना जी को अंदर अंदर दिल मे खुब गुस्सा भरा था। पर कुछ नही बोल पाई। माँ के खिलाफ एक शब्द साधना जी के बरदाश्त नही थे रामप्रसाद जी को।

मंजु और मीनु की खुशी का ठिकाना नही था।सासु माँ को एसे बहु बने देखकर। साधना झुंझलाहट मे सारा गुस्सा मंजु और मीनु पर निकालती। 
 एक दिन सुबह से ही साधना जी को अम्मा जी ने साग बनाने ,फिर तेल मालिश ,और फिर कुछ साडी पकडा दी फाल लगा देना शाम तक इन पर।और मुझे तेरी बहुओ के हाथ का काम नही पसंद तुझे ही करना है। 

                       

साधना जी जोर से बोली इंसान हूँ मै भी थकती हूँ,कठपुतली बना कर रख दिया ये कर वो कर । क्या बोली? अम्मा जी साधना   बडबडाहट सुन कर तुरंत बोली।घर के सभी इक्टठा हो गये तेज आवाज सुनकर अम्मा की। 
और जो तुने दो साल से दोनो बहुओ को कठपुतली बनाया ।मशीन की तरह उनसे काम लेती है। वो दोनो नही थकती होगीं क्या ?

बहु जब तु आई गाँव ब्याह करके हाथो हाथो पर रखा मैने।एक साल के भीतर ही तुने राम प्रसाद के साथ जाने को कहा बम्बई मै तुरंत मान गयी। तब तक शादी के साल भर के त्योहार भी नही हुए थे। सोचा बेटे का ध्यान रगना भी जरूरी है खाना घर का मिलेगा। तू कभी नही आई फिर गाँव रहने साल मे एक बार आती वो भी  रामप्रसाद के साथ ही चार,पाँच दिन रहकर लौट जाती ।मुझे आराम का कभी नही सोचा ।बम्बई मै गाँव से नही आना चाहती थी यहाँ का जीवन खाना पीना अलग है हमसे।फोन पर रामप्रसाद बताता.था दोनो बहुए प्रेम से रहती है जिठानी देवरानी नही बहन बहन जैसी पर साधना को रौब बढता जा रहा है। मै कभी कुछ कह ही नही पाया साधना को ।अम्मा क्या करू खुशहाल घर बेकार कर रखा है। हिटलर की तरह रखती है बहुओ को। 

तब सोचा की एक बार तुझे अपने तरिके से समझाया जाए एक हफ्ता नही हुआ तु मेरे आने से परेशान । सोझ जिन्हे तुने दो साल से कठपुतलियों की तरह नचाया है क्या वो तेरा रहना चाहती होगीं। ऐक औरत ही औरत का दुख समझती है। तु मास्टरनी बन गयी इनकी।

साधना ,बहु बेटो पति के सामने ये सब सुनकर नजरे झुकाऐ खडी रही। आगे बढकर अम्मा के पैर मे बैठ गयी अम्मा जी माफ कर दो मुझे ।मैने बहुओ को बेटीयाँ बनाने के बजाए कठपुतलियाँ बना दिया ।आज मेरी आँखे खोल दी आपने । आज से दोनो मेरी बेटीयाँ बनकर रहेगी। मंजु,  मीनु तुम दोनो से मै नजरे नही मिला पा रही । अपने किये पर शर्मिंदा हूँ।
चलो भाई अब सब ठीक हो गया अब साधना के हाथ से बनी चाय पिओगी अम्मा । बहुओ की तुम्हे भाती नही । अम्मा मुस्कुराई अरे ये तो इस सास को सबक के लिए करना पडा । साधना तू बैठ बहुत ज्यादा कठिन परीक्षा हो गई तेरी।ये अब कठपुतलियाँ नही , अब बेटियाँ बनकर  ये दोनो चाय के साथ गर्म गर्म पकौडे भी बनायेगी।  सब हँसने लगे।


                                                               अंशु शर्मा


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