प्राची
प्राची के तट से उठकर दिनकर मुस्काये।
खग कुल ने मधुरस में भींगे गीत सुनाये।।
कर्मवीर चल पड़े सपन को पूरा करने।
जिससे जितना हो सम्भव,पर पीड़ा हरने।।
अगर उठे हो ऊपर तो सूरज बन जाओ।
होकर धुर निष्पक्ष धरा रौशन कर आओ।।
सागर बनने की इच्छा यदि मन में पालो।
उर में रख सामर्थ्य, मगर अर्णव सम्हालो।।
अगर पवन बनकर उड़ना भाता हो मन को।
जैव जगत में प्राण वायु बन सींचो तन को।।
इन्द्रासन की भूख जिन्हें छल छद्म करेंगे।
नाना हथकंडे अपनाकर लोभ वरेंगे।।
धर्म - कर्म हैं पूरक,जैव - जगत उद्धारक।
बनो नहीं निज स्वार्थवशी होकर संहारक।।
कलम हाथ में गहकर कवि बनना गर ठानो।
रच कबीर की वाणी मानवता पहचानो।।
डॉ अवधेश कुमार अवध
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