साहित्य चक्र

20 February 2020

पिघलेगी जंजीर

मत होना अधीर


 सर्द रातों में गहरी नींद सोया है  फकीर
थके  ख्वाबों  को  आराम देती तस्वीर

भोर जगायेगी सपनों के सौदागरों को
जीने की जद्दोजहद में निकलेगी शमसीर

कर्मों के उन सभी बटोरे कारनामों की
मुंहजबानी तो मुकद्दर पे छपेगी तहरीर

सुलझती दिखे तो फिर क्या जिन्दगी
उलझती लपटों में पिघलेगी जंजीर

ख्वाहिशों की झाड़ियों से लिपटा हुआ है
चलना   संभल   के   मत   होना  अधीर

                                    उमा पाटनी


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