मत होना अधीर
सर्द रातों में गहरी नींद सोया है फकीर
थके ख्वाबों को आराम देती तस्वीर
भोर जगायेगी सपनों के सौदागरों को
जीने की जद्दोजहद में निकलेगी शमसीर
कर्मों के उन सभी बटोरे कारनामों की
मुंहजबानी तो मुकद्दर पे छपेगी तहरीर
सुलझती दिखे तो फिर क्या जिन्दगी
उलझती लपटों में पिघलेगी जंजीर
ख्वाहिशों की झाड़ियों से लिपटा हुआ है
चलना संभल के मत होना अधीर
उमा पाटनी
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