साहित्य चक्र

14 February 2020

आंखों के शामियाने



आंखों के शामियाने में
कुछ गीत रक्खे सिरहाने में
शौक भी पाले हैं हमने
जिन्दगी जीने के बहाने में


दर्द को आराम मिलता कहाँ
खोखले बैठे सब मैखाने में
एक उम्र का टुकड़ा बीता है
चन्द खुशियों को कमाने में


अपने को ही तलाशते रहे
खुद के लिखे तराने में
किसको रही फुर्सत भला 
गैरों को आजमाने में


सिक्के सुकून के खनकते रहे
उसूलों संग बतियाने में
वो लूट के लिए सब कुछ
हम रह गये   तो बस शर्माने में


सवालों की  लिस्ट लम्बी रही
क ई  रंग दिखे जमाने में
हम करते रहे माथापच्ची
उलझे जवाबों को सुलझाने में

                                           उमा पाटनी (अवनि) 

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