आंखों के शामियाने में
कुछ गीत रक्खे सिरहाने में
शौक भी पाले हैं हमने
जिन्दगी जीने के बहाने में
दर्द को आराम मिलता कहाँ
खोखले बैठे सब मैखाने में
एक उम्र का टुकड़ा बीता है
चन्द खुशियों को कमाने में
अपने को ही तलाशते रहे
खुद के लिखे तराने में
किसको रही फुर्सत भला
गैरों को आजमाने में
सिक्के सुकून के खनकते रहे
उसूलों संग बतियाने में
वो लूट के लिए सब कुछ
हम रह गये तो बस शर्माने में
सवालों की लिस्ट लम्बी रही
क ई रंग दिखे जमाने में
हम करते रहे माथापच्ची
उलझे जवाबों को सुलझाने में
उमा पाटनी (अवनि)
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