कहानी एक फौजी की
बचपन से एक सपना था,
मुझे देश हित काम करना है।
बनकर फौजी, भारत माँ की,
रक्षा के लिए मरना है।
पापी और दुराचारियों को,
मुट्ठी में मसलना है।
जो आँख उठाये भारत माँ पर,
उसे वही भस्म करना है।
सपना मेरा पूरा हो गया,
एक दिन में फौजी बन गया,
आँसु थे उन आँख में,
जिसका लाल बड़ा उस दिन हो गया।
सीमा पर मुझे जाना था,
भारत माँ के लिए फर्ज निभाना था।
आँख जो उठा रहा क्रूर अत्याचारी,
उसे इस मिट्टी में मिलाना था।
जानता हूँ अब कुछ बरस,
तेरी रखी का हकदार नही बन पाऊंगा।
पर वादा रहा मेरी प्यारी बहना,
तेरी डोली उठाने जरूर आऊँगा।
जानता हूँ अब कुछ बरस,
तेरी गोद मे सर रख कर न सो पाऊँगा।
पर वादा रहा मेरी प्यारी माँ ;
तेरे बुढ़ापे का सहारा बनने जरूर आऊँगा।
जानता हूँ अब कुछ बरस,
तेरी माँग में सिंदूर न सजा पाऊँगा।
पर वादा रहा मेरी अर्धागिनी,
तेरा चाँद बनकर में हर रोज रात को आऊँगा।
जानता हूँ अब कुछ बरस,
तेरे साथ मिट्टी में कुश्ती न खेल पाऊँगा।
पर वादा रहा मेरे बचपन के यारो,
में फिजा में आज़ादी बनकर लौट आऊँगा।
भाई, बेटा ,पति औऱ दोस्त के फ़र्ज को पीछे छोड़,
वो एक सिपाही के फ़र्ज निभाने जाता है।
जन्मभूमि की रक्षा के लिए,
वो आपने प्राण न्योछावर कर आता है।
दिवाली, दशहरा ,ईद और बैशाखी,
वो खुले आसमाँ के नीचे मनाता है।
भारत माँ की रक्षा करने के लिए,
वो अपने लहू से होली खेल आता है।
छन्नी हो जाता उसका शरीर गोलियों की बौछार से,
पर देश का मान वो नही झुकने देता है।
आखरी सांस तक लड़ता दुश्मन से,
तिरंगे को कंधे पर रख आगे बढ़ता जाता है।
सांस दम तोड़ लेती,
पर वो अपनी पलके न झपकाता है।
वो वीर देश का रखवाला है,
जो मरते थम तक तिरंगे को नही झुकने देता है।
हाँ माना अपनी बहना को दिए,
वादे को में न निभा पाया।
पर ख़ुशी मुझे इस बात की है,
देश की बेटियों की इज्जत बचाने के में काम आया।
हाँ माना अपनी माँ के
बुढ़ापे का सहारा न बन पाया।
पर गर्व मुझे इस बात का है,
ये जीवन माँ भारती की रक्षा के काम आया।
हाँ माना मेरी अर्धागिनी,
मैं तेरे जीवन मे कोई रंग न भर पाया।
पर खुशी मुझे इस बात की है।
मातृभूमि से किये पहले इश्क़ को में मुक्कमल कर आया।
हाँ माना मेरे यारों,
में फिर लौट कर तुम्हे गले न लगा पाया।
पर गर्व मुझे इस बात का है,
में तिरंगे से बने कफन में लपेट कर सहादत के साथ आया।
ममता मालवीय
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