मैं बसंत .........कहां ढूंढू ।
बोझिल सुबह से ,
अधमूंदी आंखों में,
सतरंगी सपने कैसी बुनू।।
मैं बसंत....... कहां ढूंढू ।
पथरीली दीवारों में,
इमारतों के जंगल में ,
भागती हुई गाड़ियों में ,
खिले हैं ..........गुलाब
कहां .............ढूंढू ।
मैं बसंत कहां......... ढूंढू।
थकी हुई जिंदगी ,
जब काम से,
वापिस है आती।
परेशानियों का ,
बोझा साथ लाती।
उम्मीदों के बुझते चिरागों में,
हिम्मत का साहस कैसे भरूं।
मैं बसंत कहां........... ढूंढू।
बसंत तो ,
मन के भीतर आएगा ।
फिर बाहर वह जगमगा जाएगा।
मैं जीने का रंग,
कहां -कहां भरूं।
मैं बसंत....... कहां ढूंढू।
कितनी नीरसता है।
मैं उमंगो का रस कैसे भरूं।।
प्रीति शर्मा "असीम"
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