साहित्य चक्र

26 February 2020

बसंत कहां..... ढूंढू





मैं बसंत .........कहां ढूंढू ।
बोझिल सुबह से ,
अधमूंदी आंखों में,
 सतरंगी सपने कैसी बुनू।।


मैं बसंत....... कहां ढूंढू ।
पथरीली दीवारों में,
 इमारतों के जंगल में ,
भागती हुई गाड़ियों में ,
खिले हैं ..........गुलाब
 कहां .............ढूंढू ।


मैं बसंत कहां......... ढूंढू।

 थकी हुई जिंदगी ,
जब काम से,
 वापिस है आती। 
परेशानियों का ,
बोझा साथ लाती।


 उम्मीदों के बुझते चिरागों में, 
हिम्मत का साहस कैसे भरूं।

 मैं बसंत कहां........... ढूंढू।

 बसंत  तो ,
मन के भीतर आएगा ।
फिर बाहर वह जगमगा जाएगा।


मैं जीने का रंग,
 कहां -कहां भरूं।

 मैं बसंत....... कहां ढूंढू।
 कितनी नीरसता है।
 मैं उमंगो का रस कैसे भरूं।।  


                                           प्रीति शर्मा "असीम" 

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