उलझी-उलझी सी जिंदगी
उलझी हुई ज़िन्दगी के
मायने कुछ अजीब हैं।
इल्जामों के दौर के
अफसाने कुछ अजीब हैं।
दर्द देने वाले पूछते हैं
कि किया क्या है उन्होंने।
पर बताये कौन उन्हें
कि क्या नहीं किया है उन्होंने।
थाम कर चलना चाहा था
वक्त की डोर को।
पर थम कहां पाता है वक्त
किसी के थामने से।
सुकून की तलाश में
घूम रही है जिन्दगी।
पर सुकून है कहां
ये ढूंढ पाना ही कुछ अजीब है।
तनूजा
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