साहित्य चक्र

22 February 2020

हवा की हल्की सी फड़फड़ाहट





यदि मैं कोई पौध हूँ 
तो वहीं -कहीं किसी
खेत में रोपना मुझे
जहां दुख का बाग न हो
मैं  नाजुक सा अंकुर हूँ
हवा की हल्की सी फड़फड़ाहट से 
टूट जाता हूँ
यदि मैं कोई गिलहरी हूँ
तो चुपके से अपने हाथों में
एक मुंगफली का दाना रख देना
देखो शोर न करना
चीखना नहीं 
मैंने पेड़ों से खामोशी
और पक्षियों से बोलना सीखा है
दिल कांच  सा  नाजुक है
शहर के धमाकों से टूट सकता है
यदि मैं हूँ कोई प्रेमिका
तो बस  उतना चाहना 
कि तुम्हारे साथ जीने का मन हो
इससे ज़्यादा कोई क्या दे सकता है
किसी को?
इससे अधिक कोई क्या चाह सकता है
यदि वह जीवित है !

                                                   पूर्णिमा वत्स 


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