साहित्य चक्र

09 February 2020

भ्रूण हत्या ना करो



मुझे खुश रहने दो
अरे मारो नहीं जीने दो
रास्ता क्यों रोका है
हटो! मुझे जाने दो
प्रभात बेला सी मुझे
निकलने दो चलने दो
दोपहर की धूप सा
बुलंद हौसला हो मेरा
शाम ढ़ले तो चांद तले 
रहने दो, चमकने दो। 
हाँ हाँ! मेरा भी जीवन
बहुत अनमोल है। 
भ्रूण हत्या ना करो
मुझे तुम जीने दो। 
मुझे खुश रहने दो। 

                                      हर्षिता श्रीवास्तव

 

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