साहित्य चक्र

16 February 2020

मंजिल की डगर

संभल कर चल

है दूर तक अँधेरा और कोहरा भी गहरा।
संभल कर चल , रोशनी पर भी है पहरा।।

कोहरे को जरा ओस की बूंदों में बदलने दे।
राह में फैले घनघोर अँधेरो को छटने तो दे।।

माना उजाले के सहारे बहुत नही है पास तेरे,
बस जुगनू के उजाले पर खुद को चलने दे।

मंजिल की डगर में बहकावे बहुत से है लेकिन,
कुछ मील के पत्थर के सहारे खुद को चलने दे।

कोई सिरा मंजिल का कभी तो दिख जायेगा।
अपनी पलकों को पल भर भी ना झपकने दे।।


                                       नीरज त्यागी


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