वक्त और हालात बिक रहे हैं
जिस्म और ज़ज्बात बिक रहे हैं ।
इस खुदगर्ज दुनिया मे दोस्तों
रिश्ते और औकात बिक रहे हैं ।
बिक रही लैला, बिक रहे मजनूँ
जुदाई और मुलाकात बिक रहे हैं ।
बिक रही ज़र,ज़ोरू,ज़मीं वर्षों से
मज़हब और जात बिक रहे हैं ।
रास्ते बिक रहे हैं मंजिलें बिक रही
सफ़र और सौगात बिक रहे हैं ।
-अजय प्रसाद
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