साहित्य चक्र

14 February 2020

जुदाई और मुलाकात


वक्त और हालात बिक रहे हैं
जिस्म और ज़ज्बात बिक रहे हैं ।

इस खुदगर्ज दुनिया मे दोस्तों
रिश्ते और औकात बिक रहे हैं ।

बिक रही लैला, बिक रहे मजनूँ
जुदाई और मुलाकात बिक रहे हैं ।

बिक रही ज़र,ज़ोरू,ज़मीं वर्षों से
मज़हब और जात बिक रहे हैं ।

रास्ते बिक रहे हैं मंजिलें बिक रही
सफ़र और सौगात बिक रहे हैं ।

                                                 -अजय प्रसाद




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