साहित्य चक्र

01 February 2020

मैली जीवन दायिनी



माँ नदिया -सी डोलती,ममतामयी हिलोर।
मेरे  आँसू पोछते उसके  गीले  कोर ।।

मैली जीवन दायिनी तिल-तिल बहती जाय।
मेरे पूत कपूत हैं किससे कहे लजाय  ।।

नफरत की कलमें उगीं बारूदों के ढ़ेर।
किस माली ने भर दिया कदली के मन बेर।।

मृग-जल से छलते रहे रख सागर का नाम।
अधरों की इस प्यास को कहाँ मिला आराम।।

मैं हरदम पानी रहा तू हरदम से तेल ।
मिलने की सारी जुगत हो जाती है फेल।।

उड़ते-उड़ते फिर रहे कहाँ-कहाँ घनश्याम।
धरती पथराई पड़ी,बरसो उसके धाम।।

सब हरियाली चर रहे सत्ता के घड़रोज।
आरोपित हैं चीटियां मची खोज पर खोज।।

 सब के सब चिकने घड़े सबके सब घड़ियाल।
साँसत में हैं मछलियां बड़ा कुटिल है ताल।।

होरी, धनिया, झोपड़ी सब आते हैं याद।
औ'वादों की चासनी पाँच बरस के बाद।।

                                              अशोक मिश्र


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