देता चुनौती हूं पवन
गर कर सको मेरा दमन
लो आज खुद को आजमा
छन एक ना भयभीत मैं
हूं शक्ति का प्रतीक मैं
तेरे वेग से जो ना डरा
सम्मुख तेरे सीधा खरा
पिया मां का छिर मैं
अजय अद्वित वीर मै
देता हूं चुनौती ऐ पर्वत
तुम्हे निजशक्ती पर ना गुमान हो
की आज प्रत्यंक्षा मेरी तन गई
तुमसे भी मेरी ठन गई
चुनौती को भी जो दे चुनौती
वैसा हूं रणवीर मै
पिया मां का छिर मैं
अजय अद्वित वीर मैं
इन हस्तरेखाओं का क्या विधान है
जब कर्म ही मेरा प्रधान है
ना भय है अब मृत्यु का
ना शोकाकुल होता हूं पराजय पर
चलता रहता हूं प्रतिकूल पथो पर भी
और ढूंढता रहता हूं मैं अवसर
चाहे बाधाएं विपदाएं आ जाएं
होता ना कभी अधीर मैं
पिया मां का छिर मैं
अजय अद्वित वीर मैं
इन छोटे मोटे परिणामों से
हूं मैं तो नहीं डरने वाला
विजय पथ का हूं पथिक मैं
अन्तिम स्वांस तक लरने वाला
मेरे छनिक पराजय पर
क्यों सब लोग यूं धिक्कारते
हो सिंह जब मूर्छित परा
मूषक भी हैं ललकारते
नहीं जानते मैं कौन हूं
गूंगा नहीं गर मौन हूं
पिया मां का छिर मैं
अजय अद्वित वीर मैं
आनंद सिंह
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