साहित्य चक्र

13 February 2020

मैं कैसे भूल सकता हूँ।

मैं  कैसे भूल सकता हूँ।



जिंदगी के उस मील- पत्थर  पर, 
जब अकेला ही रह गया था।
मेरा आत्म-विश्वास भी मुझे
छोड़ कर   दूर जा खड़ा था।।

मैं कैसे भूल  सकता हूँ।
कब मेरी सोच ने, 
सोचना बंद कर दिया था।
कहाँ से विचारों ने, 
शून्यता का रुख किया था।।

मैं कैसे भूल सकता हूँ।
उस  वक्त जब विचारों की
जो  एक लौ टिमटिमायी थी।।
विश्वास  की किरण जो  मेरे ,
दिल में जगमगायी थी।।

मैं कैसे भूल सकता हूँ।
मेरी सोच ने, विचारों की
जो सकारात्मकता पाई थी।।

मैं कैसे भूल सकता हूँ।

हां, मैं नहीं भूल सकता हूँ।।


                                          प्रीति शर्मा "असीम"


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