साहित्य चक्र

21 February 2020

शिथिल सी आंखों

यादें



कुछ यादें अतीत की
विस्मृत कभी होती नहीं। 
वक्त गुजर जाता है
 याद पर जाती नहीं
यूँ ही मन के उपवन में
 कौंध सी जाती है जब
स्थिर, शिथिल सी आंखों से 
अश्क निकल आते हैं तब
पूर्व का था सूर्योदय
 कब सूर्यास्त में ढ़ल गया
बहुत कुछ संभाला था 
जो रेत सा फिसल गया
यादें ही आती है अब,
वक्त तो आता नहीं
गुजरा जो जमाना फिर
अफसाना गाता नहीं। 

                                   हर्षिता श्रीवास्तव


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