मेरे गाँव की यादें
मैं छोड़ आया
अपने गांव के
पीपल के पेड़ की
छांव को
जहां मेरा बचपन
रहता था।
उस शाम को
जहां लुकाछिपी खेलते थे
मैं और मेरे दोस्त
आमों की बोरों को
मैं छोड़ आया ।।
सरसों की पीली चुनरी
ओढ जहां खेत
लहराते थे
वह खेत छोड़ आया ।।
मक्खन दूध दही की
नदियां जहां बहा करती थी
उन को अलविदा कह आया ।।
छोड़ आया
अपनी मां के आंचल को
जिसे जन्नत कहते हैं लोग
वह गलियां और चौबारा
जहां गुजरती थी
गायों की घंटियों की गूंज
छोड़ आया
उन्हें कमाने
दो वक्त की रोटी को
छोड़ आया
अपने गांव की मिट्टी को ।।
मोनिका शर्मा मन
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