साहित्य चक्र

01 February 2020

खोज में लग जा




दाना दाना ही तो यहाँ कमाना
फिर दाने की खोज में लग जा

मिट्टी से  मानव   तो बन गया तू
फिर मिट्टी  की  शोध में लग जा...

कोसों  कोसों  दूर बढ़ चले हम
आँगन कोना  त्याग दिया सोना

अब पोसने की जुगत में लग जा
फिर  दाने की खोज में लग जा...

सुबह  शाम की चिंता छोड़ कर
मोह माया  के डोरों को तोड़कर

कस मश की लहरों को भुला जा
तू  स्वप्न  घनेरे  निद्रा  से  जग जा...

दाना  दाना  ही  तो  यहाँ  कमाना
तू फिर दाने  की खोज में लग जा

मिट्टी  से मानव  तो  बन  गया  तू
फिर  मिट्टी  की  शोध  में  लग जा...

                                    संतोष जोशी



No comments:

Post a Comment