दाना दाना ही तो यहाँ कमाना
फिर दाने की खोज में लग जा
मिट्टी से मानव तो बन गया तू
फिर मिट्टी की शोध में लग जा...
कोसों कोसों दूर बढ़ चले हम
आँगन कोना त्याग दिया सोना
अब पोसने की जुगत में लग जा
फिर दाने की खोज में लग जा...
सुबह शाम की चिंता छोड़ कर
मोह माया के डोरों को तोड़कर
कस मश की लहरों को भुला जा
तू स्वप्न घनेरे निद्रा से जग जा...
दाना दाना ही तो यहाँ कमाना
तू फिर दाने की खोज में लग जा
मिट्टी से मानव तो बन गया तू
फिर मिट्टी की शोध में लग जा...
संतोष जोशी
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