साहित्य चक्र

01 February 2020

परिंदों को आसरा

*शजर -पेड़*




*शजर की चाह थी कि परिंदों को आसरा दे ।*
*फिजा ने कुछ और ही दिखाया है नजारा  ।।*


*जईफ हुआ शजर,जज्ब भी लुप्त हुआ है।*
*इसका आसरा देने का जज्बा अभी जवां है ।।*


*कुछ इस कदर खस ने इसे हर तरफ घेरा है।*
*सूरज की धूप से भी इसका अंतर्मन तपा है।।*


*गर्दिशे दौरां का असर कुछ इस कदर हुआ है।*
*इसके अपने बजूद ने इसका साथ छोड़ा है।।*


*दामनगिर भी इसे खाक में मिलाने को है।*
*कुल्फ़त ऐसी है इसकी, जमीं ने दरकिनार किया है।।*


                      नीरज त्यागी


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