साहित्य चक्र

06 February 2020

सुख-सौभाग्य

पलती हूँ मैं ममता की 
छांव मे मुझसे सूसज्जित
 हर घर आंगन


जगदंबा का प्रतिरूप
लेकर सुख-सौभाग्य से भरु 
हर घर आंगन


प्यारी हूं मैं हरेक की
किलकारियों से गूँजता 
हर घर आंगन


खुद के अरमानों की
कद्र न करती चहकु मै 
हर घर आंगन


हर रिश्ते को दिल
से निभाऊ है मुझसे रोशन
हर घर आंगन


                                         ✍ राज शर्मा


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