साहित्य चक्र

08 February 2020

एक पत्र ईश्वर के नाम



मेरे प्रिय ईश्वर 
मैं तुम्हें जानता नहीं, 
मैंने तुम्हें कभी देखा भी नहीं है।

मगर फिर भी 
तुम मेरी भावनाओं में,
मेरी आत्मा रहते हो। 

जीवन मेरे में 
अनेक उतार-चढ़ाव आए,
मैं हंसा भी बहुत रोया भी बहुत
मगर तुम्हें न जानते हुए भी
तुम्हारी अनुभूति मुझे 
हर पल, हर जगह होती रही।

लोगों ने मेरे साथ 
अच्छा भी किया और बुरा भी
 हंसाया भी बहुत और 
रुलाया तो कई गुणा ज्यादा ही था।

मगर फिर भी 
जब भी अकेला हुआ।
मुझे तेरी मुस्कुराहट ही दिखाई दी 
किसी खुले आसमान में चमकती।


                                                राजीव डोगरा


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