साहित्य चक्र

02 February 2020

अस्मिता बेटी की

क्यों नित्य नित्य किसी बेटी के , अंगो के विमोचन हो जाते है, 
क्यों चीख़ नहीं सुनते कर्णपटल , क्यों बंद ये लोचन हो जाते हैII


नग्न देह वह पड़ी हुई है , शर्म से आँखे गढ़ी हुई है, 
सोंचो जरा उन चारो ने जब , तन से साड़ी खींची होगी ,
एक पिता के दिल से पूंछो,  उसपे तब क्या बीती होगी ,
माँ ने कैसे गर्भ में अपने पाला होगा , खून से बिटिया सींची होगी II

क्यों श्वान ये मानस रूप में , हमे नोच नोच कर खाते है , 
क्यों ऐसे कुकृत्यों से ये , भला तनिक नहीं घबराते है , 
दानव ये निसाचर दुष्ट अन्यायी , नए नए भेष धराते है ,
कहा चले गए राम कलियुग के , क्यों नहीं निकलकर आते है II

चीख़ चिल्लाहट आक्रोश और नारे हम इतने सस्ते में बिक जाते है ,  
जो जाते विस्मृत चन्द दिनों में ,क्या नए काण्ड की आस लगाते है II
 
जलते है जब ये तन और मन , चीख़ो की आह निकलती है , 
क्यों थम जाते है उसके कदम , जब वो अपनी राह निकलती है II

कब तक आँखों में अश्रु भरे हम , शांत सुन्न से बैठे रहंगे ,
भयंकर कष्ट दर्द बिटिया के आखिर कब तक सहते रहंगे II

कोई बेटी अपनी अस्मिता , ऐसे कैसे खो सकती है ,
क्यों नहीं सोचते आप सभी , कल को बेटी आपकी भी हो सकती है II

मेरे सभ्य समाज के सभ्य जनों , मुझ पर इतना उपकार करो ,
मेरे चन्द शब्दों की इस कविता पर , जरा बैठ गूढ विचार करो ,
                         जरा बैठ गूढ विचार करो II
                                                                                  
                                                       आंशिकी त्रिपाठी 'अंशी '


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