साहित्य चक्र

01 February 2020

मन्द-मन्द मुस्कान



है मैं खिलौना तेरे हाथों का
बेशक बजूद तुझसे है मेरा
सूत्रों की बंदिश में जिंदगी
फिर भी अदाकार बना दिया ।।


है हम वंचित काजी जमीं पर
लिए कर में सूत्र ललक द्रष्टा
है हम सब खेल ए मैदान के 
सूत्रों के बड़े रोचक बाजीगर।।


है किरदार मनभावन हमारा 
द्रष्टा मन्द-मन्द मुस्कान लिए
है मात्र खिलौने हम फिर भी
नृत्य रस से बाजीगरी निभाए ।।


                                      ✒️ राज शर्मा


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