स्त्री के सभी सोलह श्रृंगार अधूरे मेरे बिन
पुरातन संस्कृति का मनोहर परिधान हूं मैं।
मनभावन लगे सबको सुंदर रंगों में रंगकर
नाज़ुक कलाइयों की ऐसी सुंदरता बनू मैं।।
करवाती हूं हर पल पूर्णता का एहसास
झिलमिल सी श्रृंगार में शोभायमान बनूं।
खन-खनाना मेरा सबका मन मोह लेता
नाजुक कलाइयों की ऐसी सुंदरता बनूं मैं ।।
उत्सवों में खन-खनाती हर ओर उल्लास
छाए जब मातम तोड़ के बिखर जाती हूं ।
प्रीत को दर्शाउ मैं वधू का श्रृंगार बन जाऊं
नाजुक कलाइयों की ऐसी सुंदरता बनूं मैं ।।
️ राज शर्मा
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