आज फिर से एक बगावत की आग उठी है
दिल से मेरे तुम्हे पाने की आवाज़ उठी है
बिन संगीत सा जीवन मेरा बीता जाये
न कोई ख़्वाब मेरी अंखियों ने दिखाये
आज कोई नए सुरों की साज सजी है
दिल से मेरे तुम्हे पाने की आवाज़ उठी है
देखो कितनी नदियाँ आज अपने घर आई
जिनको देख देख सागर की बाहें खिल आयी
नदियों में प्यार वाली लाज जगी है
दिल से मेरे तुम्हें पाने की आवाज़ उठी है।
आया मौसम है देखों मोहब्बत वाला
ज़माने को नफरत से प्यार में बदलने वाला
नफ़रत फ़ैलाने की सियासत में एक रिवाज़ बनी है।
दिल से मेरे तुम्हे पाने की आवाज़ उठी है।
दिल से मेरे तुम्हे पाने की आवाज़ उठी है।
शुभम पांडेय गगन
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