साहित्य चक्र

21 February 2020

प्यार की लौ


'देखो अंश, हम बात करते हैं। पर, तुम्हें देखकर मेरे मन में वैसी भावनाएं कभी नहीं बनी जिसकी तुम अपेक्षाएं पाले बैठे हो। हम अच्छे दोस्त भी तो बने रह सकते हैं यार। पता नहीं यह बात तुम्हें समझ क्यों नहीं आ रही। मैं समझा कर थक चुकी हूँ।' पीहू ने अंश को समझाते हुए कहा। 'मैं कब मना कर रहा हूँ। मैंने अपना हाल-ए-दिल बयां किया है। तुम इसे मेरा पागलपन समझती हो तो हाँ मैं पागल हूँ। मैं तुमसे प्यार करता हूँ। मैं जानता हूँ, आज तुम्हारे दिल में मेरे लिए कोई जगह नहीं है। लेकिन मुझे विश्वास है एक दिन तुम खुद कहोगी कि हाँ मेरे दिल में जगह बना चुके हो।' अंश ने मुस्कराते हुए कहा। धीरे-धीरे समय बीता गया। 

                   


पीहू और अंश रोज वाट्सअप पर लगातार बात करते रहे। जब भी समय मिलता अंश पीहू को 'मेरी जान' कहने से नहीं चूकता। पीहू भी अब इसकी आदी हो चुकी थी। एक दिन पीहू ने कहा-'यार हम कुछ ज्यादा ही वाट्सअप पर बातें करने लगे हैं। मुझे भी इसकी लत लग चुकी है। मैं अपनी पढाई को भी समय नहीं दे पा रही हूँ। हम ऐसा करते हैं, आज के बाद हम अगले पद्रंह दिन के लिए सिर्फ आधा घंटा ही वाट्सअप पर बात किया करेंगे। हाँ, सुबह 'गुड माॅर्निंग' का 'मैसेज' जरूर भेजा करेंगे। बोलो, मेरा साथ दोगे।' पीहू ने भावुक होते हुए कहा।

'पीहू, मुझे मंजूर है। पर मैं सिर्फ एक बात पूछना चाहता हूँ। क्या अब तुम्हारे दिल में मेरे लिए कुछ जगह बनी है?' अंश ने कुरेदते हुए पूछा। 'सच बताऊँ। हाँ, जगह बनी है पर उतनी नहीं जितनी तुम उम्मीद कर रहे हो।' पीहू ने हँसते हुए कहा। अंश को समझते देर न लगी कि आज उसने एक बहुत बड़ा मुकाम हासिल कर लिया था। पीहू के दिल में अपने प्यार की लौ जो जला दी थी।

                                                              विनोद वर्मा 'दुर्गेश'


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