साहित्य चक्र

14 February 2020

नारी है श्रीकृष्ण की गीता

शस्त्रधारी नारी 

 जब - जब चाहा जिस्म से खेला
 जब ना चाहा गलियों में ढ़केला
 कैसा है यह ऋतु अलबेला? 
 औरत है खेल क्या खेला? 
 श्रीराम ने इसको माँ का पूजा
 श्रीकृष्ण कहें इससे बड़ा ना दूजा
 नारी है श्रीराम की सीता
 नारी है श्रीकृष्ण की गीता
 नारी से संसार है जीता
 नारी का कभी ना बीता
 रो - रो कहे नारी का मन
 क्या कसूर है? 
 मेरा हे भगवन!

 मुझसे हैं श्रीराम - किशन 
 मुझसे है युग परिवर्तन
 बनकर कभी माँ 
 बनकरके  कभी बहन
 निश्चल किया मैंने 
 सर्वस्व समर्पण
 आज सुनो प्रभु एक वाणी !

 क्यों ऐसा हो गया है प्राणी? 
 अविरल गंगा जब मैं फैली
 फिर क्यों तुमने कर दी मैली? 
 अपनी अविरल धारा लाकर
 गंगा को कर दी गंगासागर
 नि:हत्थी नहीं है नारी
 सुनो जगत के व्यभिचारी
 नारी जब करेगी प्रहार
 बचा ना सकेंगे पालनहार।

                                  सुशीला गुप्ता 'गजपुरी'

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