ईश्वर की आवाज
जो आया मेरे दर पर
बस कुछ न कुछ
मांगने आया।
पर कभी मांगा न मुझे
न मांगा मेरा
प्रेम तत्व मुझसे।
बस हताश रहा
मुक्ति के लिए,
और परेशान रहा
अपनी इच्छाओं के लिए।
बस ढूंढता रहा
लोगों में कमियां
न तलाशा की उनकी
आत्मा में मेरी अभिव्यक्ति।
अपनी घर की
चारदीवारी की तरह
मुझे भी बांटता रहा,
कभी मंदिर,कभी मस्जिद
कभी गिरजाघर के रूप में।
राजीव डोगरा 'विमल'
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