साहित्य चक्र

20 February 2020

तुमसे मिलने की आशा

जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा, अभिलाषा अधिक है।



दूर तलक चांदनी पे, तुम्हारी तस्वीर मयस्सर होती है,
नीले रंग के आंगन में, तुम्हारी परछाईं मयस्सर होती है,
ख़्वाबों की महबूबा मेरी, तुम्हारी परिभाषा अधिक है,
जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा, अभिलाषा अधिक है।

धन्य-धन्य जीवित आत्मा का, मेरे जीवन में आत्मस्थ हो,
कंठ में, तन-मन-तन में, क्षण-क्षण में, तुम समीपस्थ हो,
गीतों की सुंदरता में, तुम्हारे गीत की भाषा अधिक है,
जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा, अभिलाषा अधिक है।

जल-नभ-तल, सूरज-चांद, पशु-पंछी, फूल-शूल रहेगा,
किंतु, जैसा भी वो क्षण होगा, हमारा-तुम्हारा ही होगा,
मेघ पर लिख-भेज देता हूँ, यह अभिलाषा अधिक है,
जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा, अभिलाषा अधिक है।

                                                 शिवम राज व्यास "रिशु"


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