आखिर कब तक
आधी आबादी को यूँ
लाचार होकर जीना पडेगा
घर आने में बच्चियों को जरा देर हो जाने पर,
माँ-बाप कब तक सहमें रहेंगे।
सूर्यास्त कब तक महिलाओं के लिए
भयावह साबित होगा
सभ्यता के लिबास मे छिपे भेडिये
कब तक अपना जंगलीपन दिखायेंगे
आखिर कब तक
हवस की आग में
मासूमों को कब तक जलाया जायेगा
कब तक दानवी प्रवृत्तियों के साथ,
मानव होने का दिखावा करेंगे
आखिर कब तक...।।
दीपक तिवारी "दीप"
No comments:
Post a Comment