साहित्य चक्र

16 February 2020

पनपी तेरी गोद सिंधु सभ्यता



अक्षत रोली कुमकुम चंदन , श्रद्धा सुमन से करूँ अर्पित
तन धन मन सारा जीवन, चरणों में मात करूँ समर्पित
तीन लोक चौदह भवन को, तुझसे वारते है नर नारायण 
देव मनुष्य रूप में आकर, वंदन करते हैं नित तेरी शरण

सुर्य नव अंशु ले नित नित, प्रभा बेला को करता शौभित 
हिमाद्रि मुकट सुर्य मोती सम,भाल करे नित आलौकित
अक्षत रोली कुमकुम चंदन , श्रद्धा सुमन से करूँ अर्पित
तन धन मन सारा जीवन, चरणों में मात करूँ समर्पित


चीर कलेजा तम का दिनकर,प्रदीप्त होता नितदिव्य पुंज 
हृदय भी झंकृत हो गाता जब, नेहसुमन से महके निकुंज
गंगा जमुना की संस्कृति सदा, भरती है हृदय पावन नेह 
प्रफुल्लित होता मन आंगन, अलंकृत होता है भारत गेह

झंकृत हो कण कण सृष्टि में, वीणापाणि के बजे सप्तस्वर
जलतरंग उठे सिंधु हृदय में, मचलने लगती चंचल लहर 
उपमा भी क्या उपमान करे , सृष्टि पटल तुझसे शौभित 
अक्षत रोली कुमकुम चंदन , श्रद्धा सुमन से करूँ अर्पित
तन धन मन सारा जीवन, चरणों में मात करूँ समर्पित


बासंती राग बजे आंगन में, अनुराग झरे हृदय से झरझर
ममतामयी करूणा की सिंधु, ममता लुटाती है तू भर भर 
तेरे चरण रज को शीष लगाने,सदा रहे हैं देव भी आकुल
पावन पुन्य तेरी क्षमता से, गौरवान्वित हुआ आर्य कुल 

पनपी तेरी गोद सिंधु सभ्यता ,पनपा है तुझसे भूमंडल
तेरी कोख से पहान चीर के , बहता है नदियों को जल 
एहसान कभी नहीं भूलेगा, जननी तेरा ये सकल जगत 
अक्षत रोली कुमकुम चंदन , श्रद्धा सुमन से करूँ अर्पित
तन धन मन सारा जीवन, चरणों में मात करूँ समर्पित


तेरी ममता का नेह पान को, स्वयं हुआ है ईश्वर अवतरण
तूझसे ही जीवन सकल सृष्टि का, तुझसे ही जीवन मरण
तेरी छांव तले है ईश्वर का घर, कृष्ण पले, पले रघुनंदन 
मुनियों ने बखानी तेरी महिमा,ऋषियों ने किया नित वंदन

उपनिषदों में सर्वोच्च रही तू, स्मृति में तू है शक्ति सकल 
ऋचाओं ने तुझे माना अनंत, श्रुतिओं में तू है ब्रह्म कमल 
वेदों में तेरा यशगान लिखा, ग्रंथों में तू है महिमामंडित
अक्षत रोली कुमकुम चंदन , श्रद्धा सुमन से करूँ अर्पित
तन धन मन सारा जीवन, चरणों में मात करूँ समर्पित


कृष्ण की पावन गीता तू है, तू ही है महाकाव्य रामायण
कालिदास का महाग्रंथ है तू , तू ही है महाभारत का रण 
तुलसी का मानस कण कण में,रसखान सने कृष्ण के रस
मीरा के पद बखाने कृष्ण को, सूर गाते है वात्सल्य रस
घन के छंद उमंग भरे यहाँ, केशव का काव्य है शक्ति दम 

कबीर दोहे मन भ्रम मिटा दें,ऐसी अद्भुत भारत भू अनुपम
भामह दण्डी उद्भट रुद्रट से होता, अलंकार भी अलंकृत 
क्षत रोली कुमकुम चंदन , श्रद्धा सुमन से करूँ अर्पित
तन धन मन सारा जीवन, चरणों में मात करूँ समर्पित

                                         भानु शर्मा रंज


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