आज मैं अपनी मुम्बई यात्रा के कुछ रोचक और स्मरणीय दृश्यों तथा घटनाओं को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ। जब मैं अपने गृह जनपद के रेलवे स्टेशन उरई से मुम्बई जाने के लिये लोकमान्य तिलक सुपर फास्ट ट्रेन पर बैठा तो जहाँ एक विशेष प्रकार की उत्सुकता मेरे मन में उल्लास एवं उमंग भर रही थी वहीं अनेक प्रकार की आशंकायें भी मेरे हृदय में धड़कनों के रूप में धड़क रहीं थीं।जैसे जैसे ट्रेन की रफ्तार तेज होती जाती बैसे ही मेरे हृदय की धड़कनें भी तेज होती जातीं।
यात्रा में एक साथी का होना यात्रा को रोचक और यादगार बनाने के लिये आवश्यक होता है।और पत्नी से अच्छा साथी भला और कौन हो सकता है।अतः मेरी पत्नी अर्चना श्रीवास्तव और मेरा दस वर्षीय पुत्र अंश भी मेरे साथ थे।हम लोग सुबह के लगभग 7बजे उरई से चल दिये थे।सारा दिन सारी रात चलकर लगभग सुबह 5बजे हम लोग मुम्बई पहुँच गये।
मुम्बई पहुँच कर मैंने वहाँ की जीवन शैली को देखा।वहाँ की जीवन शैली व्यस्त और सुव्यवस्थित थी।कोई भी मुझे वहाँ सड़क या चौराहे पर घूमता या गप्पें मारता हुआ नहीं दिखा।सब अपने -अपने कामों में व्यस्त दिखे।हर काम वहां लाइन से लगकर हो रहा था।हर जगह लाइन।लाइन वहाँ के अनुशान और व्यवस्था का एक प्रमुख अंग था।
मुम्बई के बारे में मैने सुना था कि मुम्बई रात दिन जागती है,सो मैंने देखा भी।यहाँ की लोकल ट्र्नें और टैक्सियाँ रात दिन सड़कों और पटरियों पर दौड़ती रहती हैं।
मुम्बई की लोकल ट्रेनें वहाँ का मुख्य आकर्षण हैं।मुझे तो उनसे बहुत भय लगता था।इतनी अधिक भर करचलती हैं कि मैं तो देख कर दंग ही रह गया।यदि कोई बाहर का व्यक्ति फँस जाये तो वह या तो चढ़ ही नहीं पायेगा और यदि चढ़ भी गया उसका निश्चित स्थान पर (स्टेशन)उतरना असंभव है।वहाँ के लोग इस रोज मर्रा की जीवन शैली से अभ्यस्त हैं।उन्हें अधिक दिक्कत नहीं होती।फिर भी वहाँ के लोग अच्छे और सहयोगी भाव के लोग हैं। मैं जब कभी किसी समस्या में पड़ा तो उन्होंने मेरा सहयोग किया।
मुम्बई की लोकल ट्रेनें मुम्बई की धड़कन हैं।इन ट्रेनों का रुकना यानि कि मुम्बई की धड़कन रुकना है। मुम्बई का दूसरा आकर्षण है वहाँ की वारिश।जाने कब बिन बादल बरसात बाली कहावत वहाँ लागू हो जाये कुछ कहा नहीं जा सकता।अच्छे खासे साफ आसमान में न जाने कहाँ से बादल आ जायें और और बारिश शुरू।बारिश भी ऐसी झमाझम कि लगातार घंटों बरसती रहे।
अब मुझे मुम्बई के प्रमुख दर्शनीय स्थलों का भ्रमण करना था।हम लोग वहाँ दादर के पास एक गेस्ट हाउस पर ठहरे हुये थे।हम लोगों ने वहीं से "मुम्बई दर्शन" के लिये बस में तीन सीटें बुक करवा लीं।
बस में गाइड ने सभी यात्रियों को आवश्यक निर्देश दे दिये थे।वह बस हमें अपने निश्चित मार्गों से होती हुई घुमाती जा रही थी।गाइड हर जगह के बारे में बता रहा था।मेरे पुत्र अंश के लिये तो यह सब बडा ही कौतूहल पूर्ण था।बस हमें राजीव गाँधी विज्ञान केन्द्र,गेट वे ऑफ इण्डिया,ताज होटल,बांन्द्रा फिल्मी अभिनेताओं के आवास दिखलाती हुई आगे बढ़ रही थी।सभी स्थानों पर घूमते घामते उसने हमें शाम को हमारे गन्तव्य पर छोड़ दिया।
कुछ स्थानों पर हम अपने लोकल कन्वेंस से टैक्सी द्वारा गये।नरीमन प्वाइंट,महालक्षी मंदिर,जूता हाउस,हाजी अली एवं जुहु चौपाटी आदि स्थानों का भी हम सबने खूब भ्रमण किया। समस्त मनो कामनाओं को पूर्ण करने बाले "सिद्ध विनायक" जी का दर्शन तो मेरी मुम्बई यात्रा की विशेष उपलब्धि थी।
हाजी अली तो वास्तव में एक अद्भुद स्थान है।जहाँ हम लोग समुद्र के अन्दर लगभग एक किलोमीटर रेलिंग नुमा सड़क पट्टी पर चलकर पहुंचे।यह आज भी यात्रियों,सैलानियों और श्रद्धालुओं के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। मुम्बई की अनेक खट्टी- मीठी यादें,बड़ा पाव का स्वाद एवं दर्शनीय स्थलों के मनोरम दृश्य,समुद्र की उठती गिरती तरंगो का नर्तन अपनी आँखों में बसा कर अपने घर की ओर रवाना हुये।
श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'
अच्छा संस्मरण
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteएज अच्छा संस्मरण
ReplyDeleteहार्दिक आभार
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