गर्व से लहराता तिरंगा,
कल-कल बहती पवित्र गंगा ।
बर्फ़ से ढकीं हिमालय की चोटियाँ,
मक्खन में लिपटी बाजरे की रोटि
वीर सैनिकों का बल,खेतों में चल
यहाँ विदेश में याद आते हैं पल-
मेरा वतन मेरी शान ,
करूँ इसका जन्मों गुणगान।
अमरीका से श्रीलंका,
भारत का बज रहा है डंका।
आकर देख ले बाहुबल हमारे वीरों
जिसे तनिक भी हो शंका।
इसके रूप हैं निराले,
भगवान यहाँ खुद उतरे बन ग्वाले।
कहीं रेगिस्तान में पड़ें पैरों
कहीं बर्फ़ से ढके हैं इसके पर्
यहाँ नीम और पीपल की छाँव,
बैलों की घंटियों से गूँजे गाँव
है यही वो पावन धरा ,
राम-कृष्ण के पड़े थे जहाँ पाँ
खुले यहाँ सबके लिए भक्ति द्वार
कन्याकुमारी से लेकर हरिद्वार।
वीरों की यहाँ अदभुत गाथाएँ हैं
पूजनीय कवियों के अतुलित ग्रंथ
वैज्ञानिकों की असंख्य उपलब्धि
मनमोहक त्योहारों के यहाँ मेले
गर्व हमें अपने वीर सैनिकों पर
जिनके सुबह-शाम तूफ़ानों में ढल
हम सो पायें चैन से,
इसलिए वो पलकें नहीं झपकते हैं
शीश झुकाकर नमन उन्हें हम करते
होली,ईद,दीवाली जिनके,सरहदों पर
आओ इस गणतंत्र दिवस मिलकर लें ये प्रण,
घर-घर हो ख़ुशहाली, खेतों में ह
हर इंसान बनकर माली करे देश की
मान रहे सदैव तिरंगे का,
सुबह-शाम पूजन हो गंगा का।
नामों-निशान नहीं रहे दंगे का,
देशभक्ति से भर जाये हृदय हर बं
महकता रहे भारत रूपी चमन,
प्रगति इसकी चूमे गगन।
मातृभूमि को शत्-शत् नमन,
सोने की चिड़िया कहलाये सदा मे
इंदु नांदल
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