जिसने बरगद सी छाया दी, वह है मेरे पापा।
मुश्किलों का दौर भी हँसकर, उन्होंने है नापा।
मेरे जन्म में सबके संग, उल्लास था मनाया,
मेरी मुस्कुराहट के लिए, निज संताप छुपाया,
कभी मेरी गलतियों में भी, ना खोया है आपा।
जिसने बरगद सी छाया दी, वह है मेरे पापा।
मेरी ख्वाहिश पूरी करने, सुबह काम पर जाते।
खून पसीना बहा बहाकर, मुझे चीज वह लाते।
सारी थकान उनकी मिटती, जब मैं कहता पापा।
जिसने बरगद सी छाया दी, वह है मेरे पापा।
मुश्किलों का दौर भी हँसकर, जब तब जिसने नापा।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम
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