साहित्य चक्र

20 June 2021

पापा




पापा से अस्तित्व है मेरा
पापा ही मेरा अभिमान
धर्म कर्म और ज्ञान की मूरत
पापा से होता मेरा सम्मान।

झूली हूंँ कंधे पर उनके
उंँगली थाम कदम बढ़ाया
जग के सारे सुख देकर भी
पापा ने मुझको गले लगाया।

सही गलत में फर्क बता कर
सद् कर्मों का  ज्ञान कराया
ईमानदारी का पाठ पढ़ा कर
पापा ने अच्छा इंसान बनाया।

धर्म-कर्म की शिक्षा दे मुझको
आध्यात्मिक आभास कराया
जीवन पथ की कंटक राहों में
हाथ पकड़ चलना सीखलाया।

वाणी के किन शब्दों से मैं
पापा को कितना महान बताऊंँ
कृतज्ञ हूंँ जीवन दान दिया
ऋण पुत्र का कैसे चुकाऊंँ।


                              डॉ. सारिका ठाकुर “जागृति”


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