जेहन में बार-बार ही,उठता सवाल है।
क्यों हमारे मुल्क का,बिगड़ा यूं हाल है।
हंसो के सरोवर में,बगुले हुए काबिज़,
मछली की तिजारत में,सारस दलाल है।
जम्हूरियत की मुर्गी,कसाइयों के हाथ,
है देखना किस दिन यही,होता हलाल है।
इंसानियत की माप से,जो लोग बौने हैं,
दौलत में कद उन्हीं का,उतना विशाल है।
है खौफ खादी का,कहीं आतंक खाकी का,
दहशत में आदमी का,जीना मुहाल है।
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बिनोद बेगाना
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