साहित्य चक्र

26 June 2021

आधुनिक नारी हूँ मैं





अविचल, अडिग, निडर, नारी हूँ मैं
सम्पूर्ण जीवन इस धरा पर वारी हूँ
प्रेम की फुलवारी हूँ
फिर क्यूँ लोग कहते हैं बिचारी हूँ मैं

नयनों में नीर भरी नारी 
जैसे गंगा में पानी
सम्पूर्ण जीवन को सवारने इस धारा पर आयी हूँ
अपनी आँचल में समेट कर सबकी प्यास बुझाई हूँ
सम्पूर्ण जीवन न्योछावर करती सदियों से आयी हूँ
फिर भी थोड़ी सी सम्मान की नही अधिकारी हूँ

मैं प्रेम हूँ, ममता का सागर हूँ, सम्पूर्ण हूँ
प्रकृतित्व सहनशीलता, नही अधीरता हूँ मैं
बस अधीर हूँ अपनी सम्मान के लिए
प्रेम और विश्वास के लिए
मैं स्त्री, तुम पुरुष क्या भेद है हममें तुममें
फिर भी अपमान झेलती इस जग में
अब आधुनिक नारी हूँ मैं

न अबला, न विवश, न बिचारी हूँ मैं
न बेड़ियाँ, न बंधन, बस खुला आसमां है
न्याय , स्वतंत्रता, समानता और समता से भरा समाज पाना सपना है
मजबूत, स्वतंत्र निर्णय लेने वाली नारी हूँ मैं
समानता न्याय की पूरी अधिकारी हूँ
आधुनिक नारी हूँ मैं

समाज को बदलना उद्देश्य हमारी है
घर से दफ्तर तक सम्पूर्ण जीवन  वारी हूँ
अविचल, अडिग, निडर नारी हूँ।

                                                        किरन मौर्या


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