साहित्य चक्र

26 June 2021

संस्मरण- "बचपन की दोस्त - मेरी गुलाबों"



मैं और गुलाबों उर्फ पूजा बचपन की सहेलियाँ है।वो बचपन जब दोस्त शब्द का मतलब क्लास में किसी के पास  बैठने से निकाला जाता था।3 बरस की उम्र में जब मैंने स्कूल जाना प्रारंभ किया, तब मेरी पहली सहेली बनी लक्ष्मी। जो साक्षात रानी लक्ष्मी बाई थी।उसने कभी किसी को मेरे आसपास भटकने तक नही दिया।मगर जैसे ही 5th क्लास में वो स्कूल छोड़ कर गई।

तब से गुलाबों मेरे पास बैठने लगी।और जैसा कि शुरुवात में ही मैने आपको बताया, कि हमारे लिए दोस्त शब्द का मतलब था क्लास में पास बैठना।उस हिसाब से अब गुलाबों मेरी दोस्त थी।मगर ये ईष्या का गुण इसमें भी कूट- कूट कर भरा था। गुलाबों से भी तनिक सहन नही होता था कि कोई और लड़की मेरा हाथ पकड़े या मुझसे बात करें।

 "ईष्या, प्रेम के साथ उपजी एक परछाई है। जिसका स्वयं का तो कोई अस्तित्व नहीं, मगर इसकी मौजूदगी से प्रेम की उपस्थिति का पता अवश्य चल जाता है।" 

5th क्लास से शुरू हुई यही दोस्ती 9th क्लास तक ऐसे ही चलती रही।मगर तब एक शख्स के आने से गुलाबों की ईष्या हर हद पार कर चुकी थी। "हद से पार गई हर चीज मनुष्य को मात्र पीड़ा ही देती है, फिर चाहे वह ईर्ष्या हो या प्रेम"। 

9th class में एक नई लड़की हमारी क्लास में आई ,जिसका नाम था अंजली शर्मा। हालाँकि मैं उसके पास नही बैठती थी। मगर उस वक्त उसका कोई दूसरा दोस्त नही था।इसलिए मैंने उससे दोस्ती कर ली। मेरे और उसके विचार बहुत मिलते थे, इसलिए मुझे उससे बात करना भी अच्छा लगता था।मगर ये बात गुलाबों को कतई सहन नही होती थी। उसने शुरुवात में तो अंजली को मुझसे दूर करने की बहुत कोशिश की,मगर जब ये काम हो नही पाया। तो उसने मुझसे ही लड़ना करना शुरू कर दिया। 

"किसी को खोने का डर कभी हमारे मन में इतना पनप जाता है, कि वह हमारे रिश्ते में मौजूद प्रेम को ही मार देता है"।

और कुछ ऐसा ही हुआ हमारे बीच। कक्षा 10 वी में गुलाबो के इसी डर ने उससे वो शब्द भी बुलावा दिये, जो हम दोनों से कभी सोचे नही थे।उसके बाद हमने कई महीनों तक बात नही की।

"बात न करना दूरियों को जन्म देता है और दूरियाँ रिश्ते की गहराई नापने का काम करती है"।

उस वक्त हमारे बीच आई दूरियों से हम दोनों ने बहूत कुछ सिखा।मैंने सीखा की -- "हमें वक्त- वक्त पर अपनों को हमारे जीवन में उनकी अहमियत बताते रहना चाहिए,जिससे कभी उनके मन मे असुरक्षितता का भाव उतपन्न न हो"।

और गुलाबो ने सीखा की -- "हर व्यक्ति का हमारे जीवन में अलग - अलग स्थान होता है।और सबकी अलग- अलग अहमियत।इतनी ईष्र्या भी सही नही की हम अपनों को ही पीड़ा पहुँचानें लग जाए"।

यही लड़ाई हमारे जीवन की पहली और अब तक आखरी लड़ाई थी।इसके बाद से गुलाबों ने ईष्र्या तो की, मगर कभी उसे सीमा से परे नही जाने दिया।और मैंने भी सदैव इस बात का ध्यान रखा कि मुझे खोने का डर उसके मन में न पनपे।

"रिश्ते में उतार चढ़ाव आना स्वाभाविक है,मगर निभाने की इच्छा अगर दोनों तरफ से हो,तो कोई भी रिश्ता कभी वक्त के मझदार में पीछे नही छूटता है"।

और हमारी दोस्ती भी कभी वक्त के साथ पीछे नही छूटी।

क्योंकि हमारी दोस्ती
"एक प्यार का नगमा है,
मौजो की रवानी है।
जिंदगी और कुछ भी नही।
तेरे मेरी कहानी है।

                                     लेखिका- ममता मालवीय 'अनामिका'



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