साहित्य चक्र

12 June 2021

जीवन में बदलाव कितना जरूरी है।






अक्सर मैं कुछ लोगों को देखती हूँ, जो बिगड़े हालातों से खुद को इतना बदल लेते है, की एक दिन उन्हें खुद से भी शिकायत होने लगती है। "बदलाव अच्छा होता है, यही उससे आपके व्यक्तित्व में सुधार आए।मगर ऐसा बदलाव सर्वथा अनुचित है जिससे आप स्वयं को ही खो दें"।


कुछ लोग हालातों के आगे घुटने टेक देते है। स्वयं को एक लम्हे में कैद कर लेते है।वो चाहते ही नही आगे बढ़ना।क्योंकि उन्हें भय है , की कोई उनके ह्दय में पड़ी दरारों को न देख लें।इसलिए उन्हें मोखोटा लगाना पड़ता है अपने व्यक्तित्व पर  मजबूत दिखाने का। मगर अपने व्यवहार में किया ये बदलाव उन्हें मात्र क्षणिक सुख ही देता है।


ये वे लोग होते है , जो परीक्षा की घड़ी में लड़ने की बजाय खुद को कमजोर कह कर दरकिनार कर लेते है। हालातों को बदलने की कोशिश करने से ज्यादा ,उन्हें खुद को बदलना सही लगता है।और खुद को हालातों के मुताबिक बदलते- बदलते वे बहते जाते है वक्त के प्रवाह में। मगर जब एक सदी तक चलने के बाद भी उन्हें मंजिल नही दिखाई देती,तब वे पीछे मुड़ कर स्वयं को देखते है।तब उन्हें हर वो समय नजर आता है जब उन्हें अपने लिए लड़ना चाहिए था मगर उन्होंने लड़ने से ज्यादा सही खुद को बदलना समझा।

अपने द्वारा की गई यही भूल उनके ह्दय में कुंठा पैदा कर देती है।फिर यही लोग आगे अपने जीवन मे स्वयं को यातनाएँ देने लगते है।उनकी ये यातनाएँ उनके साथ ,उनके अपने को भी प्रभावित करती है।ये लोग खुद को तो दुःख देते ही है, मगर अपने साथ रह रहे अपनो के भी दुःख का कारण बनते है।

"एक लंबे अरसे से दुःख में जीने वाला व्यक्ति शराबी जैसा होता है, जब दुःख उसके पास नही आता ,तो वह स्वयं उसे ढूँढने निकल जाता है"। जैसे शराबी को शराब मिल जाने पर उसकी तड़प मिटती है,वैसे ही इन दुखी लोगों को दुःख मिल जाने पर इन्हें अपना जीवन सामान्य लगता है।

"परेशानियाँ जीवन रूपी गाड़ी की धुरी है,जिसके ऊपर जीवन का पहिया निरन्तर गति करता है।अगर धुरी ही निकाल कर फेंक देगे, तो जीवन कभी आगे नही बढ़ सकता"। परेशानियों की घड़ी में अपने व्यक्तित्व का निर्माण करें, स्वयं को बेहतर से बेहतर बनाने का प्रयास करें। 

क्योंकि -

"हालातों के आगे तो हर कोई बदल जाता है,
मगर इसका तात्पर्य ये नही,
की तुम जीवन की जंग जीत गए।

असल मायनों में तुम्हारी जीत तब होगी।
जब ये बदलाव 
तुम्हारे व्यक्तिगत निर्माण का कारण बनेगा।



                                            ममता मालवीय 'अनामिका'


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