नेता बनते हैं सारे नेता नहीं है कोई
असली नेता हो वही काम कर जाते है
अपना पराया नहीं देखते हैं जग में वो
काम कोई ऐसा वो महान कर जाते है
पैसा खाते नहीं वो तो जेब से लगाते हैं
चाय भी वो दूसरों को जेब से पिलाते हैं
जनता की सेवा में वो रहते हैं तत्पर
रात को उठायें तो वो साथ चले जाते हैं
जनता भोली बेचारी बातों में आ जाती है
ऐसे अच्छे लोगों को चुनाव में हराती है
जीतकर आ जाते हैं फिर खाने वाले वो
जनता उन्हीं से पीछा नहीं छुड़ा पाती है
आजकल नेता भी बहुत बेशर्म हो गए
झूठ बोलने में देखो नहीं घबराते हैं
सत्ता के भूखे हैं इन्हें सत्ता मिलनी चाहिए
सत्ता के बिना तो यह नहीं जी पाते हैं
सत्तर सालों का रोना बार बार रोते हैं
बेरोजगारी महंगाई पर चुप सब होते हैं
कोरोना भगाने को यह थालियां बजाते हैं
जनता की सुनते नहीं मन की बताते हैं
सूरज दिखाता इक दूजा चाँद लाता है
पांच साल तक फिर ठेंगा ही दिखाता है
वापसी की जनता को मिल जाये पावर जो
देखों नेता कैसे फिर दुम वो हिलाता है
रवींद्र कुमार शर्मा
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