सिद्धांत रूप में बाल-श्रम के
सब विरोधी हैं यहां,
जिन कारणों से बनता है
एक बालक बाल-श्रमिक,
उन कारणों पर बात करने की
किसी को फुर्सत है कहां?
पकड़े जाते हैं ढाबों, दुकानों पर
काम करते रोज कई 'छोटू' यहां,
उनके घर के हालात सुधारने में
मददगार कोई बन पाए,
इतनी सहृदयता और इंसानियत
आज किसी के पास कहां?
इतनी छोटी सी उम्र में काम करके
पेट पालने कौन आता है यहां?
दो जून रोटी का जुगाड़ भी जब
किसी तरह न हो पाए,
तो ही मजबूरी में चुनी जाती है
पेट पालने के लिए ऐसी राह।
हमारी आस-पास ही कई बार
ऐसा बचपन सांस तोड़ता है यहां,
उनके रहन-सहन, पढ़ाई-लिखाई का
खर्च कहीं से हो पाए,
किसी सरकारी योजना का फायदा
उन्हें दिलवा दें
अपना काम छोड़कर इतना सा कष्ट भी
हममें से बहुतों से होता है कहां ?
जितेन्द्र 'कबीर'
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