अस्पताल में 9 दिन पूरे हो गए रेमेडी शिविर का कोर्स पूरा हो चुका था हालात धीरे-धीरे नियंत्रण में आने लगे बुखार नहीं था सामान्य परेशानियां जरूर बनी हुई थी लेकिन इस बीच सातवीं रात को भारी कोहराम मचा। डाक्टर जा चुके थे नर्सिंग स्टाफ बैठा बैठा ऊंध रहा था बीमार लोगों ने अपने-अपने कमरों में बंद रह कर नींद को बुला रखा था लेकिन पास वाले कमरे में नींद सदा सर्वदा के लिए जा चुकी थी । अटेंडेंट की हाय तोबा पर कोहराम मचा आधे घंटे में पता लगा कि जो पेशेंट गुजर चुका था उसके अटेंडेंट को डॉक्टर और नर्सों पर काफी गुस्सा आ आ रहा था । शोर शराब और मारपीट के बाद हालात बेकाबू हो गए अटेंडेंस का गुस्सा सातवें आसमान पर था लेकिन होस्पिटल स्टाफ ने उन के साथ बेरहमी से मारपीट कर डाली वे महज दो लोग थे और कर्मचारी बीस पच्चीस । अन्त में मृत देह के साथ तो पिटे हुए और घायल लोगों को वहाँ से दफा कर स्टाफ फिर से ऊंधने के अपनी अपनी कुर्सियों में जा धंसा । एक धन्टे बाद लगा जैसे यहाँ कभी कुछ हुआ ही नहीं था । कराहते, खांसते मरीजों की आवाज के अलावा वहाँ कहीं कोई जीवन का स्पन्दन शेष नहीं था । फिर दो दिन बाद वहीं धटना वहीं लोबी और लगभग वही समय ज्यों कि त्यों दोहराई गई । हां अबकी बार एटेन्डेट्स की संख्या साथ आठ थी लेकिन वहाँ प्रतिरक्षा में तैनात कार्मिक टिड्डी दल जैसे थे । फिर कहानी ज्यों कि त्यों दोहरायी गई ।
सवेरे मुझे देखने के लिए मुकेश कोली नामकरण कंपाउंडर आया मैंने पूछा यार हॉस्पिटल में रोज-रोज ये मारपीट क्यों होती है। उसने मासूमियत उत्तर दिया सर इलाज तो जैसे होगा वैसे ही होगा ।लेकिन अटेंडेंट को लगता है कि हमारी वजह से पेशेंट की जान चली गई ।अब अगर वे अगर एक दो लोग हैं तब तो चीख चिल्लाकर चले जाते हैं और ज्यादा लोग हैं तो फिर मारपीट पर उतारू हो जाते हैं । अब हम यहां अस्पताल में पिटने तो आते नहीं हैं नतीजा इकट्ठा होकर हम भी विरोध करते हैं फिर जो जो कुछ होता है वह आपको पता ही है । मैंने पूछा तुम्हारी ट्रेनिंग कितनी हुई है उसने बताया कि वो नर्सिंग फर्स्ट ईयर नर्सिंग का स्टूडेंट है यहां ज्यादातर अनट्रेंड या पढ़ने वाले विद्यार्थियों की ड्यूटी लगी हुई है। हम जानते हैं हमें ज्यादा काम नहीं आता लेकिन जो सीखा है उसी से काम चला रहे हैं । फिर वह अपनी हैसियत जताते हैं बोला सर यह नौकरी भी आसानी से नहीं मिली है मेरे नाना जी एमएलए हैं उन्होंने अस्पताल वाले पर दबाव डाला तब जाकर मुझे मुमे यह आठ हजार रुपए की नौकरी मिली है ।
फिर उसी रात को मुझे बताया गया कि अब आपको डिस्चार्ज किया जा रहा है । मन थोड़ा हल्का हुआ लगा चलो अब घर पहुंच कर बची हुई दवा आदि का कोर्स पूरा कर लिया जाएगा। लेकिन यह सूचना मृग मरीचिका जैसी निकली पहली रात सूचना के बाद आंखों में इंतजार तैरता रहा। कई बार याद दिलाया इस बीच बस छोटी मोटी दवा दी गई और खाना चाय नाश्ता जरूर समय पर आता रहा । दूसरा दिन भी इसी तरह कटा और तीसरा दिन भी अस्पताल में बिना किसी दवा के कैदी की तरह बताया । बाद में पता चला कि क्योंकि मेरा कैशलेस पॉलिसी वाला मैटर था और डॉक्टर को तथा अस्पताल को मेरे इलाज पर कुछ विशेष करना शेष नहीं था इसलिए उन्होंने तीन दिन पटके रखा और मेरा नाम पर किराए का बिल बनता रहा । अंत में परेशान होकर जब मैंने अपने परिजनों को पहुंचकर शिकायत करने और जांचने के लिए कहा तब जाकर तीसरे दिन रात को 9:00 बजे उन्होंने मुझे डिस्चार्ज किया ।आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि अस्पताल में मेरे कमरे का किराया होटल जैसा था । बताना इतनी जरूरी है कि हॉस्पिटल अब सेवा के केन्द्र नहीं रहे बल्कि लूट के अड्डे बन गए हैं । बड़ी बड़ी बिल्डिंग है बनाकर बैठे हैं और कोरोना जैसी आपदा हर रोज आने वाली है नहीं इसलिए आपदा में अवसर बनाकर लूट के रोजाना नए-नए कीर्तिमान बना रहे हैं । छुट्टी मिलने के बाद मैं औपचारिकता वस काउंटर पर बैठे हुए नर्सिंग स्टाफ और अन्य कर्मचारियों से अभिवादन के लिए पहुंचा आपको आश्चर्य होगा एक भी कर्मचारी ने मेरे अभिवादन का उत्तर भी नहीं दिया ये सब मुझे अपरिचित और आश्चर्य की निगाहों से जाते हुए देखते रहे जहां मैंने 12 दिन उनके साथ गुजारे थे । घर पहुंचकर परिजनों ने जिस तरह मेरा स्वागत किया और फिर लगातार जैसी परिचर्या की उसके फल स्वरुप मैं धीरे-धीरे सुधार की ओर बढ़ रहा हूं।
लेखक- राजेन्द्र मोहन शर्मा
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