साहित्य चक्र

06 June 2021

कोरोना काल : अस्पताल की डायरी- 2

 
    

       

अस्पताल में भर्ती के समय आपकी हैसियत की तहकीकात ता छान कर भली भांति करने का रिवाज वैसा ही है जैसे हरिद्वार के पण्डे यजमान की औकात के अनुसार पूजा पाठ करा कर उनके स्वर्ग का टिकट पक्का करते हैं । यहाँ भी अस्पताल में बच गए तो घर वापस वर्ना स्वर्गारोहण तो पक्का । सबसे बड़ी बात यहाँ से रसीद कटा आदमी अस्पताल का उधार छोड़कर नहीं जा सकता । घर पर वसूली वाले भले ही चक्कर काटते रहें यहाँ से आपकी मिट्टी भी तभी उठेगी जब अस्पताल में चल चुकी सांसों तक का अन्तिम लेखा नहीं निपट जाता ।

       रजिस्ट्रेशन काउंटर ,हां तो साहब ! क्या करते हैं ,साहब की हैल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी कितने की है अपर लिमिट क्या है इसकी। साहब को और क्या-क्या बीमारियां हैं साहब की चेयर नजदीक लाइए हमारे गोया साहब साहब बोलकर पहले वे आपको चढ़ाएंगे फिर आपको नापाएंगे ,तोलेंगे फिर आपकी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी पर निगाह डालेंगे । आनलाइन चैक करके पास बैठे बीमा एजेंट से  तस्दीक कराया गया। फिर उन्होंने ऐलान कर दिया ठीक है साहब ₹50000 नकद जमा करा दीजिए । ये किस बात के , भाई कैशलेस पॉलिसी है  ये तो नगद किस बात के । नहीं सर ये  हमारा नियम है   उनको लगता है शायद कैशलेस पॉलिसी में कोई लोचा हो  सकता है और मरीज कहीं चुपचाप उठकर भाग खड़ा न हो इस लिए लंगोट तो पकड़ी रखें । मरीज की मुण्डी निचोड़ने के लिए वे बीच बीच आपसे नकद जमा कराने के लिए कहते रहेंगे।

       इधर तीसरी रात का खौफनाक मंजर का साया अभी तक मंडरा रहा है रात भर जिन खयालों में धेरे रखा उनमें ऊर्जा थी जो बीच बीच में खुद की नब्ज टटोल कर आश्वस्त कर रही थी, सृजन और निर्माण के अनवरत विचारों की जिद्द थी लेकिन शरीर और मस्तिष्क के तालमेल में भारी घपला जारी था। मृत्यु से  एक पल का भी भय नहीं था लेकिन वेदना, बैचेनी और सांसों रफ्तार के घटते बढते आरोह अवरोह के बीच आक्सोमीटर से खुद ही आक्सीजन लेवल और पल्स रेट पर चुंधियाई आंखे बार बार गडाता रहा । अब समझ आया वेदना रहित मृत्यु अमरत्व है और शारीरक कष्टों और वेदनाओं के बीच रेंग रेंग कर धिसटकर थमती जिन्दगी के लिए मृत्यु नारकीय क्यों हो जाती है।

       सवेरे सबसे पहला भारी भरकम झटका लगा जब एक अर्द्ध प्रशिक्षित नर्स ने बीपी,शूगर, आक्सीजन लेवल नापने के बाद पल्स रेट पढी और मुझे झिंझोड़ कर कहा सर आपकी पल्स रेट तो महज 30 रह गई है । मैं कुझ समझ नहीं पाया लेकिन हड़बड़ा अवश्य गया । तो अब मैं ने पूछा पीपीपी किट में सम्पूर्ण रूप से दबी ढंकी उस महिला के चेहरे के भावों को भी मैं देख समझ नहीं सकता था क्योंकि चेहरा भी किट के पार्ट ट्रान्सपरेन्ट  मास्क से ढंका हुआ था । कुछ नहीं लेटे रहिए मैं ने आपको बता दिया है । लगा जैसे पहला अल्टीमेटम आ गया । लेकिन मन को विश्वास नहीं हो रहा था हां बैचेनी जरूरत से ज्यादा बढ गई । फिर कुछ देर में चाय बिस्किट लेकर एक अल्हड़ लड़की धुसी । गुड मोर्निंग सर ! पहली बार एक आश्वस्ति का शब्द सुना । सर पहले बिस्किट फिर चाय लीजिए , मैं ने सुना अनसुना कर दिया । क्या हुआ सर मैं ने लेटे लेटे वाकिया बंया किया वो बोली अरे सर आप किसकी बात में आ गए वो तो एक अनट्रेंड नर्स है आपके पास अपना आक्सोमीटर है एक खुद चैक करें मैं ने यन्त्रवत आदेश की पालना की पल्स रेट 76 दिखाई दिया । लड़की ने हंसते हुए चाय का पेपर ग्लास पकड़ा और कमरे निकल पड़ी । मैं कभी गिलास को देखते हुए लड़की के रुनझुन करते पदचापों पर कान लगाए रहा । धीरे धीरे एक दो बिस्किट कुतरे फिर चाय सुड़की हालांकि वह आधी ही पेट में जा सकी । दो घन्टे बाद डाक्टर आए विवरण सुनाया बिना प्रतिक्रिया दिए औपचारिकता निर्वाहित कर नर्सिंग एटेन्डेट को निर्देश देकर खिसक लिए ।

       इस बीच परिजनों, मित्रों, सहयोगियों और ना जाने अनंत कितने ही लोगों के संदेश और फोन आते जाते रहे ।  फोन के आने पर मेरी मन:स्थिति हजार चौरासी मनोभावों  पर उतरती उमड़ती धुमड़ती रही । कभी मैं ठीक-ठाक ढंग से बात करता और कभी झुंझला कर फोन उठाता ही नहीं। कुछ लोग टेलीग्राफिक भाषा में बात करते तो कुछ चिकित्सक बनकर सलाह देते रहे । अस्पताल में डॉक्टरों से ज्यादा उनको अपने पर भरोसा था लेकिन सबसे महत्वपूर्ण संबल परिजनों से मिला अनवरत रूप से पिताजी ने भाईयों ने  पत्नी ,बेटी पुत्र, पुत्रवधू और फिर सबसे लाडले पौत्र केशू और लाडली पौत्री पीहू जी ने मुझे थामें रखा ,बांधे रखा और हंसाए रखा। लेकिन यह सब लोग परिदृश्य से बाहर थे अस्पताल कोई आ नहीं सकता था एक दो लोगों ने पूछा तो मैंने सख्ती से मना कर दिया । हां मेरा भतीजा डॉक्टर धैर्य अवश्य एक बार मुझे संभालने आया और मेरे साले साहब के लड़के ने इस बीच बीच में मुझे जरूरी सामान पहुंचाने में सहायता की क्योंकि साले साहब की पत्नी भी इसी अस्पताल में अचानक बीमार होकर जा पहुंची थी उनके भर्ती होने में भारी कठिनाइयों का निवारण करने में मैंने किंचित सहयोग कर दिया था।

       चार दिन की चाकरी करके  बुखार भी थक गया थक गया मैं थार रेगिस्तान का रहने वाला हूं । हमारे यहां उबलता उछलता तपाता सूरज भी 50- 52 डिग्री के बाद धीरे-धीरे ठंडा होने लगता है ।कुछ ऐसा ही हाल बुखार का भी था वह भी 104 से उतर कर सौ के आसपास आ टिका और फिर एक-दो दिन में दवाओं के प्रभाव सामान्य अवस्था पर आ गया । लेकिन तूफान गुजर जाने के बाद उसके बदहाली के चिन्ह मिटने में लंबा समय लगता है । शरीर में जो व्याधियां स्थापित हो चुकी थी वे अभी टस से मस नहीं हो रही थी । डॉक्टरों ने मेरी हैसियत और संपर्कों की पूरी फहरिस्त जानने के बाद मुझे फिर से जीवन रक्षक रमडेसिविर इन्जेक्शन मंगाने के इनस्सिस्ट किया । आखिर अपनी ओर से कोशिश करने पर 6 दिन बाद मेरे लिए 6इन्जेकशन का बंच अस्पताल पंहुचा । लेकिन सवेरे इंजेक्शन की सूचना मेरे पास आने और डाक्टरों को सूचित करने के बाद भी बन्दों ने पूरा दिन निकाल दिया । अन्त में झुंझलाकर जब मैं सख्ती से आंखें तरेर कर बात की जब भागते दौड़ते एक इंजेक्शन लेकर एक कम्पाउंड आया । मैं ने पूछा कि पहले दिन तो दो इंजेक्शन लगाए जाते हैं फिर ये एक ही क्यों है । वह हड़बड़ा गया । सर सर करते उसने एक इंजेक्शन ड्रिप में लगाकर शुरू किया और कह गया मैं दूसरा लेकर आता हूँ । कोई दो धन्टे बाद वो दूसरे इंजेक्शन के साथ अवतरित हुए कहने लगे बड़ी मुश्किल से ला पाया हूँ । मैं ने नाराजगी जताई और कहा कि मेरे लिए विशेष आवंटन हुआ है तो फिर समस्या क्या है उसके मुंह से सच निकल गया सब सैटिंग का मामला है साहब । ये तो आप हल्ला मचाने लगे वर्ना आपको आज एक ही लगता और हो सकता है चार  इन्जेक्शन  लगाकर आपको रवाना कर देते ।

       निरन्तर जारी....

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